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खरीफ फसल की बुआई

जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ

जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ

किसानों ने माना खेत की मिट्टी हो रही मुलायम, बुआई और रोपाई में कम लग रही मेहनत

रायपुर। भारत सहित पूरे विश्व में जब भी खेती-किसानी की बात आती है, तो उसके साथ खाद का उपयोग भी एक बड़ी चुनौती या यूं कहें कि हर साल एक समस्या के रूप में उभरकर सामने आती है। वहीं फसल की बुआई से पहले किसानों को खाद की चिंता सताने लगती है। हर साल खाद की कालाबाजारी के भी मामले देशभर में सामने आते रहते हैं। दूसरी ओर किसान भी यह आरोप लगाते हैं कि उन्हें खाद की उचित मात्रा में आपूर्ति नहीं की जाती, जिस कारण सोसायटियों में हमेशा खाद की किल्लत बनी रहती है। ऐसे में हर साल एक बड़ा रकबा खाद की कमी से कम पैदावार कर पाता है। वहीं अब इस समस्या को दूर करने के लिए कई राज्य जैविक खाद को अपनाने लगे हैं। ऐसे में
छत्तीसगढ़ के किसान जैविक खाद का भरपूर फायदा उठा रहे हैं और फसल की पैदावार बढ़ा कर अपने को और स्वाबलंबी बना रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने भी माना है कि जैविक खाद का उपयोग करने से खेत की मिट्टी मुलायम हो रही है। इस खरीफ सीजन में खेत की जुताई और धान की रोपाई में किसानों को काफी आसानी हुई है।

छत्तीसगढ़ मेें जैविक खाद लेना अनिवार्य किया

जहां एक ओर कीटनाशक के प्रयोग से फसल जहरीली हो रही है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी कमजोर हो रही है, ऐसे में छत्तसीगढ़ सरकार जैविक खाद का उपयोग करने किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार का मानना है जैविक खाद के प्रयोग से जहां जमीन की उर्वरा शक्ति तो बढ़ेगी ही, दूसरी ओर रासायनिक खाद का उपयोग कम होने से इसकी कालाबाजारी कम होगी और हर साल किसानों को होने वाली खाद की किल्लत से किसानों को छुटकारा मिल जाएगा। इसी के तहत छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को जैविक खाद लेना अनिवार्य कर दिया है।


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जैविक खाद के फायदे

छत्तीसगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जैविक खाद का उपयोग हर मामले में किसानों के लिए लाभदायक साबित होगा। इससे किसानों को घंटों सोसायटियों में खाद के लाइन लगाने से जहां छुटकारा मिलेगा और जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाने में मदद मिलेगी। वहीं जैविक खाद के उपयोग कें कई फायदे भी हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे मिट्टी की भौतिक व रसायनिक स्थिति में सुधार होता है व उर्वरक क्षमता बढ़ती है। वहीं रासायनिक खाद के उपयोग से मिट्टी में जो सूक्ष्म जीव होते हैं उनकी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है, जिस कारण हर साल किसानों को फसल का नुकसान होता है। जैविक खाद के उपयोग से उन सूक्ष्म जीवों की गतिविधि में वृद्धि होती है और वे फसल की पैदावार बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं। वहीें जैविक खाद का उपयोग मिट्टी की संरचना में सुधार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अपना सकती है, जिससे पौधे की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। वहीं इसके उपयोग से मृदा अपरदन कम होता है। मिट्टी में तापमान व नमी बनी रहती है।

जैविक खाद के उपयोग से मुलायम हो रही मिट्टी



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वहीं वर्तमान में खरीफ फसल की बुआई के समय छत्तीसगढ़ के किसानों ने भी माना है कि जैविक खाद का उपयोग करने से उनकी जमीन कह मिट्टी मुलायम हुई है। इस कारण इस साल उन्हें जुताई और रोपाई करने में काफी मदद मिली। फसल लगाने में हर बार उन्हें जो महनत करनी पड़ती थी वह इस बार काफी कम हुई, जिससे उनके समय और पैसे दोनों की बचत हुई है।

गौठानों में बनाई जा रही कंपोस्ट खाद

छत्तीसगढ़ में धान की खेती व्यापक रुप से की जाती है। यही कारण है कि इसे धान का कटोरा कहा जाता है। जब खेती व्यापक होगी तो खाद की जरूरत ज्यादा होगी। ऐसे में छत्तीसगढ़ में जैविक खाद की आपूर्ति करने में गौठान एक महत्वपूर्ण भूका निभा रहे हैं।


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छत्तीसगढ़ सरकार ने गांव-गांव में पशुओं का रखने के लिए गौठान बनाने योजना शुरू की थी, जिसके तहत प्रदेश के लाखों पशुओं को एक ठिकाना मिला। वहीं दूसरी गौठानों में अजीविका के कई कार्य भी शुरु किए गए, जिसमें कंपोस्ट खाद निर्माण में इन गौठानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और किसानों को खाद की किल्लत से राहत पहुंचाई।

ऐसे में बनाई जाती है जैविक खाद

जैविक खाद बनाना काफी आसान है। यही कारण है कि आज किसान जैविक खाद खेत या अपने घर पर ही तैयार कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में गौठानों में इस खाद को तैयार किया जाता है। इसको बनाने के लिए सरकार ने हर गौठान में एक टैंक बनवाया है। इसमें गोबर डालकर इसमें गोमूत्र मिलाया जाता है। इसके साथ ही इसमें सब्जियों का उपयोग भी कर सकते हैं। कही-कही इसमें गुड़ का उपयोग भी किया जा राह है। इसके बाद इसमें पिसी हुई दालों व लकड़ी का बुरादा डाल दें। आखिर में इस मिश्रण को मिट्टी में साना जाता है।


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यह जरूरी है कि खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थों की मात्रा सही हो। जैविक खाद बनाने के लिए 10 किलो गोबर,10 लीटर गोमूत्र, एक किलो गुड, एक किलो चोकर एक किलो मिट्टी का मिश्रण तैयार करें। इन पांच तत्वों को अच्छी से मिला लें। मिश्रण में करीब दो लीटर पानी डाल दें। अब इसे 20 से २५ दिन तक ढंक कर रखें। अच्छी खाद पाने के लिए इस घोल को प्रतिदिन एक बार अवश्य मिलाएं। 20 से २५ दिन बाद ये खाद बन कर तैयार हो जाएगी। यह खाद सूक्ष्म जीवाणु से भरपूर रहेगी खेत की मिट्टी की सेहत के लिये अच्छी रहेगी।
धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे

धान की खड़ी फसलों में न करें दवा का छिड़काव, ऊपरी पत्तियां पीली हो तो करें जिंक सल्फेट का स्प्रे

वर्तमान में खरीफ फसल की बुआई हो चुकी है और फसल लहलाने भी लगी है। ऐसे में किसान अब फसल को सहेजने में लगे हुए हैं। किसान उन्हें कीट और अन्य बीमारियों से बचाने के लिये कई जतन कर रहे हैं। ऐसे में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (ICAR) ने किसानों के लिए मौसम आधारित कृषि सलाह जारी की है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान की मौसम आधारित कृषि सलाह

वर्षा के पूर्वानुमान को ध्यान में रखते हुए सभी किसानों को सलाह है की किसी प्रकार का छिड़काव ना करें और खड़ी फसलों व सब्जी नर्सरियों में उचित प्रबंधन रखे।

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दलहनी फसलों व सब्जी नर्सरियों में जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

धान की फसल में यदि पौधों का रंग पीला पड़ रहा हो और पौधे की ऊपरी पत्तियां पीली और नीचे की हरी हो, तो इसके लिए जिंक सल्फेट (हेप्टा हाइडेट्र 21 प्रतिशत) 6 किग्रा/हैक्टेयर की दर से 300 लीटर पानी में घोल बनाकर स्प्रे करें। इस मौसम में धान की वृद्धि होती इसलिए फसल में कीटों की निगरानी करें। तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फिरोमोन प्रपंच -3-4 /एकड़ लगाए।
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इस मौसम में किसान गाजर की (उन्नत किस्म - पूसा वृष्टि) बुवाई मेड़ों पर कर सकते हैं। बीज दर 0-6.0 कि.ग्रा. प्रति एकड़। बुवाई से पूर्व बीज को केप्टान - 2.0 ग्रा. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचार करें और खेत में देसी खाद और फास्फोरस उर्वरक अवश्य डालें। जिन किसानों की टमाटर, हरी मिर्च, बैंगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है,

वे मौसम को देखते हुए रोपाई मेड़ों पर (ऊथली क्यारियों) पर करें और जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें।

इस मौसम में किसान ग्वार (पूसा नव बहार, दुर्गा बहार), मूली (पूसा चेतकी), लोबिया (पूसा कोमल), भिंडी (पूसा ए-4), सेम (पूसा सेम 2, पूसा सेम 3), पालक (पूसा भारती), चौलाई (पूसा लाल चौलाई, पूसा किरण) आदि फसलों की बुवाई के लिए खेत तैयार हो तो बुवाई ऊंची मेंड़ों पर कर सकते हैं। बीज किसी प्रमाणित स्रोत से ही खरीदें। जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। किसान वर्षाकालीन प्याज की पौध की रोपाई इस समय कर सकते हैं। जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। इस मौसम में किसान स्वीट कोर्न (माधुरी, विन ऑरेंज) और बेबी कोर्न (एच एम-4) की बुवाई कर सकते हैं।
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जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। कद्दूवर्गीय और दूसरी सब्जियों में मधुमक्खियों का बडा योगदान है क्योंकि, वे परागण में सहायता करती है इसलिए जितना संभव हो मधुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें। कीड़ों और बीमारियों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि विज्ञान केन्द्र से सम्पर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाईयों का प्रयोग करें। किसान प्रकाश प्रपंश (Light Trap) का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बड़े बरतन में पानी और थोडा कीटनाशक दवाई मिलाकर एक बल्ब जलाकर रात में खेत के बीच में रखे दें। प्रकाश से कीट आकर्षित होकर उसी घोल पर गिरकर मर जाएंगे। इस प्रपंश से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों मर जाते हैं। गेंदा के फूलों की (पूसा नारंगी) पौध छायादार जगह पर तैयार करें और जल निकास का उचित प्रबन्ध रखें। फलों (आम, नीबू और अमरुद) के नऐ बाग लगाने के लिए अच्छी गुणवत्ता के पौधों का प्रबन्ध करके इनकी रोपाई जल्द करें।